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** हेलो जिन्दगी * * तुझसे हूँ रु-ब-रु * * ले चल जहां * *

Wednesday, April 1, 2015

मेरी कविता




जब भावो का कलश भरता है
उद्वेलित  मन छलक पड़ता है
डूब जाते है शब्द और अक्षर
गुमसुम हो जाती है मेरी कविता |

संवेदनाओ के ज्वार से जूझे
टूटती ,बनती, ,घायल होती
ठगी ,बेबस  जब अंक में लौटी
रोती  लिपट मुझसे मेरी कविता |

मिथक ,रूढ़ियों से टकराती
नित नव परिभाषाये गढ़ती
कलंकिनी जब तमगा पाती
तब -तब लड़े मुझसे  मेरी कविता |

शब्दों ,छन्दो  से सजी धजी
सकुचाई नवोढ़ा सी चली
छूती  जब जब पिया का जी
लगती गुनगुनाने मेरी कविता ।











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